शेर के जबड़े में हाथ डालकर भक्ष्य को वापस लाने की दौड़ हैं,
डटे हैं जान की परवाह किये बगैर, अचंभित हु, ये कैसी होड़ है?
मौत से सीना-तान भीड़ गए हैं ये जीवनदाता कहलाने वाले,
विजयी ना संक्रमण को होने देंगे, निश्चय इनका कमरतोड़ हैं।
नमन करें स्वीकार, अद्वितीय हैं रण, जीत दृष्टि में नही लेकिन,
निकल पड़े है कोट पहनकर, जहा ना मंज़िल, ना कोई मोड़ है।
न जाने कितनों ने इस क्रूर तांडव में चढ़ा दिए हैं प्राण-कमल,
सूक्ष्म-जीव और मानवों की इस जंग में फिर भी डटे करोड़ हैं।
समय साक्षी हैं, सारी मानवता दर्शक हैं और लिख रहा हु मैं,
याद रखेगा इतिहास, जो इस अभूतपूर्व परीक्षा का निचोड़ हैं।
ऋण कैसे ये चुकाएंगे भला, नम आखों से मानवंदना दे रहें,
बेबाकी से ललकारें रणभूमि में मौत को, ये शौर्य बड़ा बेजोड़ हैं!
-ऋत्वीक