तुम्हारे बाप की ये जागीर नहीं,
ये बात तुम्हें समझायेंगे।
तुम लाख नज़रअंदाज़ करों,
हम लौट के वापिस आएंगे।
प्रकृति के आशिक़ हैं हम,
ये बात नहीं भूलने देंगे।
चाहें प्राण जाए या शीश कटें,
हम पेड़ नहीं कटने देंगे।
ऑक्सीजन की कीमत तुम,
नागपुरियों को क्या बताओगे?
एक झलक भी जिनकी न देख सकें,
क्या शक्ल उन्हें दिखाओगे?
जिस कुर्सी से हैं अकड़ तुम्हारी,
उस कुर्सी को हम सरका देंगे।
चाहें प्राण जाएं या शीश कटें,
हम पेड़ नहीं कटने देंगे।
आँचल में जिसकी बैठे हैं,
उसकी इज़्ज़त नहीं लूटने देंगे।
आशिक़ इस हरियाली के,
हर कीमत पर इश्क़ निभाएंगे।
आ जाये पास जो मेहबूब के,
वो हाथ नहीं रहने देंगे।
चाहें प्राण जाए या शीश कटें,
हम पेड़ नहीं कटने देंगे।
-ऋत्वीक