जब बढ़ती हुई गर्मी गला देगी हिमालय को
और सागर लिपट जाएगा धरा से
क्या तब जागेंगे हम?

जब सरफिरे तोड़ देंगे सारे वृक्षों को
और नंगा हो जाएगा ये जहान
क्या तब जागेंगे हम?

जब चुकाना पड़ेगा हर धुंए का हर्जाना
और शुद्ध हवा भी मेहेंगी होगी
क्या तब जागेंगे हम?

जब टूट जाएगा इबादत का हर आशियाना
और प्रेम हार जाएगा घृणा से
क्या तब जागेंगे हम?

-अश्रुत