रब की रेहमत है मोहब्बत
किसीकी जायदाद नहीं
जो सबकी जेबों में हो
ये वो सिक्का नहीं
बिकते है धोखे सरेआम
हम धोखेबाज़ नहीं
किस्मत के प्यादे है
थोड़े पागल ही सही
लौट जाएंगे अपने घर
अभी दाव लगाया ही नहीं
मैखाना खाली होनेको है
अभी जाम बनाया ही नहीं
इश्क़ का तजुर्बा हमनें
शराब के नशे सा लिया है
नशा कबका उतर चुका
सिर्फ सरदर्द बाकी है
ख़ुशनुमा चेहरों के पीछे
छुपे होते है राज़ कई
बिकते नही ग़म बाज़ारों में
वरना हम कंगाल नहीं
-ऋत्वीक