तुम्हारी शहादत को हमेशा याद रखेंगे हम,
सम्मान ये तुम्हारे लिए ना होगा कभी कम।
सींचा इस चमन को अपनें प्राणों से हर दम,
नही भूलेंगे तुम्हें बहारों में ये खाते है कसम।
इंसानों से लड़ने के लिए हमने बहोत बनाये बम,
पर एक विषाणु से हार रहें सर्वशक्तिशाली हम।
चेतावनियों के बाद भी नहीं रोके हमने कदम,
अब इन शहादतों पर सिर्फ हो रहीं हैं आँखें नम।
न जाने कितने बार हुई कुदरत की हत्या निर्मम,
खुद को खुद का दुश्मन साबित कर चुके हैं हम।
बोझ बड़ा ही भारी छोड़ गए हो कर्मसाथी तुम,
थम गए अब जो निकले थे हमे बचाने कदम।
अनाथों के ज़ख्मों पर काश होते शब्द मरहम,
पर ये दुख तो होता हैं ज्वालामुखी विस्फोटसम।
जानकार कहते हैं लिखने से कम हो जाएंगे ग़म,
बस इसी उम्मीद में ऋत्वीक चला रहा हैं कलम।
बहोत बड़ी कीमत देकर मिला हैं ज्ञान दुर्गम,
सारे मानवी मूल्यों में त्याग ही हैं सर्वोच्चतम।
-ऋत्वीक