आन, बान और शान नहीं हैं,
सच का जहा सम्मान नहीं हैं।

झूठ को प्यार अपार देते हैं,
सच कहों ललकार देते हैं,
झूठों को सीने से लगा कर,
सच्चों को धिक्कार देते हैं।

सज्जनों में ऐसे जान नहीं हैं,
सच का जहा सम्मान नहीं हैं।

आशा का आधार हैं सच,
वीरों का श्रृंगार हैं सच,
फूलों के इन बाज़ारों में,
काँटों का व्यापार हैं सच।

तलवार तो हैं पर म्यान नहीं हैं,
सच का जहा सम्मान नहीं हैं।

मानवता का मान हैं सच,
कुदरत का सम्मान हैं सच,
कौव्वों के इस कोलाहल में,
कोयल सी एक तान हैं सच।

आँखें तो हैं पर कान नहीं हैं,
सच का जहा सम्मान नहीं हैं।
-ऋत्वीक