मार के गोली सीने पे…
निकल पड़े थे नौजवान ग़ुलामी का बदला लेने मार के गोली सीने पे अंग्रेज़ो से लोहा लेने जालियांवाला बाग की हर चीख उन्हें रुलाती थी प्रतिशोध की ज्वाला आखों से हर नींद उड़ा ले जाती थी उस बहरी हुकूमत को बम से आवाज़ सुनाई थी इंक़लाब के नारों से अंग्रेज़ी नींव हिलायी थी रंग दे […]
दास्तां-ए-तन्हाई
तन्हा थे, तन्हा रह जाएंगे ख़त्म होगी शराब, सिर्फ पैमाने रह जाएंगे अब ना होगी, उम्मीद किसीसे कोई भरी महफ़िल में, हम ये बात कह आएंगे मिले धोखे है , हर दूसरे शख़्स से निकल जाए मतलब, तो वे आँख ना मिलाएंगे साथ छोड़ते देखे है, कितने महफ़िलो के साथी रूठे ना हमसे कोई, वो […]