हमें तोड़नेवाले आज भगवान बने बैठे हैं,
कल के याचक आज धनवान बने बैठे हैं।
जो टूट कर बिखर गए उनमे नहीं शामिल,
हम टूटा मकां जलाकर हाथ सेकने बैठे हैं।
कौन था सितमगर कहाँ से आया मत पूछों,
हम अपनी बर्बादियों का जश्न मनाने बैठे हैं।
डर नहीं हमें इन उंगलियों से खून बहने का,
बिखरे टुकड़े जोड़कर तस्वीर बनाने बैठे हैं।
बुझी वो आग जिससे हमारा जहां रोशन था,
उम्मीद की झुठी चादर से सर्दी भगाने बैठे हैं।
तमाचों से किस्मत के हम हुए नहीं मायूस,
जहाँ डूबी कश्ती वहीं मछली पकड़ने बैठे हैं।
-ऋत्वीक