अत्त्याचार की हर चीख को,

कोई सुननेवाला होना चाहिए,

भूख से तड़पते जिस्म को,

कोई पूछनेवाला होना चाहिए।

तोड़कर सारे बांध बेबाक सा,

आँख से आंसू निकलना चाहिए,

ज़मीं को थोड़ा हल्का करने अब,

आसमां नीचे उतरना चाहिए।

बोहोत हुआ ये खौफ़-ओ-सन्नाटा,

अब ज़ख़्मी शेर ये गुर्राना चाहिए,

क्यों रोकते हो आवाज़ अपनी,

अब एक शोर बुलंद होना चाहिए।

हो काला गोरा या मोटा पतला,

हर इंसान समान होना चाहिए,

जलाकर सारी ऊंच-नीचता,

नफरत को धुंए में उड़ना चाहिए।

सागर से गहरी या चट्टान से बुलंद,

दुश्मनी अन्याय से होनी चाहिए,

धर्म, जात, मज़हब, रंग, सरहद,

या अब कुछ नया चाहिए?

कितना गलत हैं कितना सही,

हिसाब बराबर होना चाहिए,

इस जहाँ में अगर न्याय हैं,

तो उसे हर पल होना चाहिए।

पानी की तलाश में भटके प्यासे,

तो किसी भूखें पेट को खाना चाहिए,

जब तक हैं ये तस्वीर हिन्द की,

ना चैन की नींद आना चाहिए।

बेखौफ़ होना चाहिए,

बेबाक होना चाहिए,

न्याय पर सबका,

हक़ होना चाहिए।

कभी कभी इंसानियत को भी,

खड़ा कटघरे में होना चाहिए,

इंसान के प्रकृति पर अत्याचार का भी,

मामला विचाराधीन होना चाहिए।

मुकदमा कटनेवाले हर पेड़ का,

अदालत में चलना चाहिए,

सालों का इंतेज़ार हो भले ही,

कुदरत के साथ भी न्याय होना चाहिए।

जान है हर जिस चीज में,

उसे नाज़ होना चाहिए,

अमीरी गरीबी से परे,

बस न्याय होना चाहिए।

सच को दबाने की हर साज़िश को,

सरासर नाकाम होना चाहिए,

कोशिशें लाख हो छुपाने की,

आईना साफ चमकना चाहिए।

न्याय वो नहीं हैं जो किसी,

एक को तड़पता छोड़ दे,

उसके दामन में तो ये,

सारा ब्रह्मांड होना चाहिए।

तड़पता हैं तो तड़पने दो,

इस सूरत को बदलना चाहिए,

ज़ुल्म पर चुप रहना भी,

अन्याय होना चाहिए।

इंसाफ की खौलती मशाल से,

हर कोना जगमगाना चाहिए,

कपकपाये बलात्कारी, कातिल, लुटेरे,

हमे वो बेख़ौफ़ ज़माना चाहिए।

बेखौफ़ होना चाहिए ,

बेबाक होना चाहिए,

न्याय पर सबका,

हक़ होना चाहिए।

-ऋत्वीक