इन श्रमिको की पीड़ाओं का वहां कोई तो श्रोता होगा,
उचित समय आनेपर देखना अवश्य प्रतिशोध होगा।

पैरों के छालों से निकली हर आह पतन का कारण,
और प्यासे अधरों के श्राप से चारो ओर अनर्थ होगा।

गिरेगी ये पढ़ी लिखी सरकारें अनपढ़ों की बद्दुआ से,
कारखाने जब बंद होंगे तो कोहराम चारो ओर होगा।

श्रमजीवियों के श्रम से खड़े हैं ये सारे महल हमारे,
याद करेंगे पछतायेंगे और ग्लानि का ना अंत होगा।

विदेश से लौटनेवालों के लिए विशेष बड़े प्रबंध हुए,
थके भूखों को न जाने कितने वाहनों ने कुचला होगा।

आक्रन्दन करती लज्जित कलम से निकली ये स्याही हैं,
न्याय भले ही हो ना हो किन्तु प्रतिशोध अवश्य होगा।
-ऋत्वीक