शोले हैं इनमें, नज़रों से नज़र मिला कर तो देख ले,
रख आईना करीब, तू ज़रा मुस्कुरा कर तो देख ले।

ना होगी फिर गुलशन में पतझड़ और बहारें ऐसी,
हैं मज़ा हर पल में, तू जरा आज़मा कर तो देख ले।

क्यों रोता हैं आयी जो ग़मों की शाम बेबसी लेकर,
निकलेगा सूरज नया, थोड़ा कर के सबर तो देख ले।

गर्मियों में आग उगलता सूरज जाड़े में सहलायेगा,
धूप हैं तो छांव भी होगी, ज़रा ठहर कर तो देख ले।

हैं इसके अलग जलवें कदम कदम पर मेरे दोस्त,
थमने से पहले एक कदम और बढ़ाकर तो देख ले।

चलते रहने से मंज़िलें कुछ करीब आया करती हैं,
ठहरे हुए मुसाफिर, जरा नज़र उठा कर तो देख ले।
-ऋत्वीक