तन्हा नहीं मैं,
मेरे साथ होती हैं हर पल,
चीटियां बोहोत सारी,
मैं कुछ भी खाऊ,
वे आ जाती हैं हाथ बटाने,
किसी दोस्त की तरह,
अनुशासित, कतार में!

कुछ चूहें भी हैं,
बड़े शर्मीले!
मुझे देखते ही भाग खड़े होते हैं,
और अनपेक्षित दर्शन देकर,
बड़ा डराते हैं,
पर प्यार करते हैं।
चुम लेते हैं कदम,
कभी जब ध्यान न हो।

शाम होते ही,
आते हैं कुछ मेहमान!
चराग़ों के इर्द गिर्द,
झूमते हैं खुशी से,
प्रेमियों से मिलने सांझ में,
न जाने कहाँ से आते हैं…
और न जाने कहाँ को जाते हैं…

इनके व्यतिरिक्त,
गर्मियों की वो शुष्क हवा,
आ मिलती हैं गले से,
क्षण प्रतिक्षण,
कहती हैं तन्हा होंगे तेरे दुश्मन!
कुदरत के आशिक़ों की तो,
सारी कायनात मेहबूब होती हैं…

-ऋत्वीक